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नकली चेहरा

प्रकाश भारती

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Belletristik/Erzählende Literatur

Description

दिलीप गौतम 1971 के भारत–पाक युद्ध में बमबारी के दौरान बुरी तरह जख्मी हुआ...याददाश्त गायब...बारह साल गुजर गये...एक दुर्घटना में याददाश्त तो वापस आ गयी मगर सर में बम का एक बारीक़ टुकड़ा अभी बी बाकी था...एक हफ्ते बाद दिल्ली में उसका ऑप्रेशन होना था...।


दिलीप अपने पुराने फौजी साथियों का पता लगाकर सलीमपुर  पहुंचा । उसका मकसद था–उस गद्दार साथी का पता लगाना जिसकी गद्दारी की वजह से उसकी रेजीमेंट के तीन सौ जवान मारे गये थे...।


सबसे पहले मिला अपने मरहूम दोस्त रनबीर के पिता जगजीत सिंह से...बदमिजाज बूढ़े को यकीन था  उसका बेटा बहादुरी से लड़ता लड़ता शहीद हुआ था...। रनबीर की जवान बहन नीता ने भी यही यकीन जाहिर किया...जबकि असलियत यह नहीं थी...। दिलीप ने अपना असली मकसद बताया तो नीता भड़क गयी और उसे पागल तक कह दिया...।


राजकुमार आहूजा से मिलते ही दिलीप की आखें फट पड़ी...दर्जनों उभरे–दबे निशानों से लगता था जैसे टुकड़े टुकड़े हो गये कटे–फटे चेहरे को फिर से जोड़ा गया था...दिलीप का असली मकसद जानकर उसने भी गढ़े मुर्दे न उखाड़ने की सलाह दी...।


जोगिंदर से हुयी मुलाकात भी मजेदार नहीं रही...गद्दार का पता लगाने के उसके इरादे को जानकर उसने भी इसे भूल जाने को कहा...।


रमेश पाल से मुलाकात न सिर्फ बदमज़ा रही बल्कि खत्म भी मार कुटाई के साथ हुई...उसे रमेश की तगड़ी ठुकाई करनी पड़ी...।


जीवनलाल दो क्लबों का मालिक था...। पहले क्लब में वह तो नहीं मिला लेकिन कैब्रे डांसर कंचन से दिलीप की दोस्ती जरूर हो गई...।


दुसरे क्लब के शानदार ऑफिस में जीवनलाल से मिलकर दिलीप ने सीधा सवाल किया–क्या बारह साल पहले उसीने गद्दारी की थी ? जीवनलाल बुरी तरह उखड गया...दिलीप को उस पर रिवॉल्वर तानकर धमकी देनी पड़ी...बाहर निकला तो जीवन का मसलमैन जग्गा टकरा गया...दिलीप को उसे बी हाथ जमाने पड़े...।


उसी रात नीता ने हमदर्दी और अपनापन जात्ताते हुये ग़लतफ़हमी दूर कर दी...दोनो ने शानदार रेस्तरां में जाकर डिनर लिया...विदा होते समय नीता ने उसे बाँहों में भरकर चुम्बन प्रदान किया...।


दिलीप होटल के अपने कमरे में लौटा तो रिवाल्वर गायब पायी...उसे लगा यह जीवनलाल की करतूत थी...गुस्से से सुलगता उसके क्लब जा पहुंचा...।


क्लब के पिछले दरवाजे से बाहर निकलते जीवनलाल और नीता को हाथ थामे हँसते मुस्कराते साथ देखकर वह मन ही मन तांव खाकर रह गया...।


वो रात दिलीप ने कंचन के साथ उसी के फ्लैट में गुजारी...।


अगले रोज दिलीप ने नीता को सीधी और साफ़ बातें करते हुये लताड़ा तो नीता ने कबूल किया जीवनलाल के साथ उसका अफेयर था उस दौरान उसके लिखे खतों की बिना वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था...।


दिलीप वापस होटल लौटा तो एक पुलिस इंस्पैक्टर ने पिछली रात हुयी रमेश पाल की मौत की खबर देते हुये उसे दो घंटे में शहर से चले जाने की चेतावनी दे दी...।


होटल से अपना सामान लेकर दिलीप कंचन के फ्लैट में जा ठहरा...अगली शाम दिलीप जीवनलाल के ऑफिस में नीता के खतों की वजह से सेंध लगाने पहुंचा...लेकिन पकड़ा गया...जीवनलाल ने उसे जग्गा के हवाले करके खत्म करने का हुक्म दे दिया और काठ के बंगले में रिपोर्ट देने को कहा...लेकिन मारामारी करके दिलीप उसके चंगुल से निकल भगा...।


दिलीप काठ के बंगले पर पहुंचा...जीवनलाल पर काबू पाकर उससे सब कुछ कबूलवाया...उसका चाबियों का गुच्छा और पिस्तौलें हतियाकर उसी की कार में उसके क्लब पहुँच गया...ऑफिस में सेफ से लिफाफा निकाला जिस जगजीत सिंह का पता लिखा था लेकिन उसे खोलकर देखने का मौका नहीं पा सका...ऑफिस से निकलकर मेनरोड पर पहुंचते ही स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़ा होकर लिफाफे का सिरा फाड़कर पहले कागज़ पर नजर डाली । मोटे हरफों में लिखा था–रनबीर की मृत्यु के वास्तविक तथ्य...तभी उसके सर किसी भारी चीज से प्रहार हुआ...हाथों से लिफाफा खिंचा जाता महसूस करते हुए होश गवांकर फुटपाथ पर जा गिरा...।


होश में आने पर खस्ता हाल दिलीप टैक्सी द्वारा कंचन के घर पहुंचा...हाथ लगाते ही फ्लैट का दरवाज़ा खुल गया...अधखुले दरवाजे से एक मजबूत हाथ ने उसे खींचकर कमरे में धकेल दिया...अँधेरे में टटोलता बैडरूम में पहुंचा...बैड पर खून से लथपथ कंचन फैली पड़ी थी...दिलीप खड़ा नहीं रह सका उसके ऊपर जा...??


क्या दिलीप इस जंजाल से निकलकर अपने मकसद में कामयाब हो...???

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